Tuesday, 27 March 2012

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना की लड़ाई और जन समर्थन


बहुत सालों से सुनते आए हैं के खुदा के यहाँ देर है अंधेर नहीं, और वो कोई भी काम किसी से भी ले सकता है। भारत में भी कुछ ऐसा ही मामला हुआ है।भारत की आज़ादी के बाद जो यहाँ की हालत रही है और नेताओं ने जिस तरह से सरकारी पैसों का दुरुपयोग किया है, उसका हिसाब नहीं लगाया जा सकता। जब सरकार ही घोटालों में लिप्त हो तो आम आदमी का कहना ही क्या, भारतीय नौकरशाही के सभी तंत्र में भ्रष्टाचार ने दीमक की तरह अपना घर बना लिया है तथा आज ये हालत है कि एक छोटे से काम के लिए भी महीनों और बरसों दौड़ना पड़ता है, ऐसी हालत में यही कहा जा सकता है कि अब इस सोने कि चिड़िया कहलाने वाले भारत का खुदा ही मालिक है।
कहते हैं जब ज़ुल्म हद से बढ़ जाता है तो इंकलाब आता ही है जैसा कि ट्यूनिशिया, मिस्र और लीबिया में देखने मे आया है और इस जनसंघर्ष ने जॉर्डन, यमन और सीरिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इन सभी देशों के रहनुमाओं ने एक लंबे समय से देश कि गद्दी पर कब्जा जमा रखा था। जिस समय वहाँ इंकलाब की हवा चल रही थी, तब ही यहाँ भारत में ये सवाल उठने लगे थे कि क्या भारत में भी ऐसे ही आंदोलन की ज़रूरत है, भारत जो कि दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र है और ऐसा भी नहीं कि यहाँ कानून और व्यवस्था कमज़ोर हों। लेकिन इसके बाद भी यहाँ भ्रष्टाचार ने पूरे तंत्र को खोखला कर रखा है।
      इधर कु वर्षों से भारत में भ्रष्टाचार के बहुत बड़े बड़े मामले सामने आए हैं,जिनमें बड़े बड़े नेताओं और नौकरशाहों का नाम आ रहा था। 2जी स्पेक्ट्रम, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन मे सरकारी पैसों का दुरुपयोग, विदेशी बैंकों में रखे गए हज़ारों करोड़ रुपयों और काले धन के किस्से सुन सुन कर पूरा भारत हैरान था कि यही वह भारत है जहाँ किसान आज भी आत्महत्या करते हैं और यहाँ आज भी देश की एक बड़ी जनसंख्या ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन निर्वाह करती है। और दूसरी ओर ये लोग करोड़ों रुपयों का इस तरह दुरुपयोग कर रहे हैं। ट्यूनिशिया, मिस्र और लीबिया के हालात देखने के बाद भी ऐसा नहीं लगता था कि भारत में ऐसा आंदोलन किया जा सकता है क्यूंकि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध और लोकपाल विधेयक के समर्थन में जंतर मंतर पर किए गए प्रदर्शन और भूख हड़ताल को जिस तरह पूरे देश से समर्थन मिला उसने ट्यूनिस तथा काहिरा के तहरीर चौक पर किए गए जन संघर्ष कि याद ताज़ा कर दी।
      सरकार ने ये सोचा भी नहीं होगा कि गांधीवादी कार्यकर्ता अन्ना हजारे की इस भूख हड़ताल को इतना अधिक समर्थन मिलेगा। देश के कोने कोने से लोगों ने पूरी तरह अन्ना का साथ दिया और विभिन्न स्थानों पर अन्ना के समर्थन में रैलियाँ आयोजित की, बड़ी संख्या में लोगों ने जंतर मंतर पर जाकर अन्ना को और सरकार को एहसास दिला दिया की भ्रष्टाचार से जनता अब तंग आ चुकी है, और इस लड़ाई में पूरा भारत अन्ना के साथ है। जनता की ईस एकता ने सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और सरकार जन लोकपाल विधेयक का मसौदा तयार करने के लिए एक संयुक्त कमिटी गठन करने पर राज़ी हो गई। इस कामयाबी से अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता ने भी ये साबित कर दिया है कि अगर सच्चे दिल से कोशिश की जाए तो सफलता मिलती है।
स्वतंत्र भारत में ये जनता की बहुत बड़ी जीत है। अब इस बात की उम्मीद है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और सामाजिक कार्यकर्ता शांति भूषण के नेतृत्व में ये कमिटी 30 जून तक अपनी रिपोर्ट पेश कर देगी तथा संसद के मानसून सत्र में इसे पारित कर दिया जाएगा। बाद में अन्ना हजारे ने अपने तेवर में थोड़ा नरमी लाते हुए ये कहा कि संसद अगर लोकपाल विधेयक को पास नहीं भी करती है तो वो सरकार के इस फ़ैसले को मान लेंगे तथा अगर सरकार को इस बिल को पारित करने में और अधिक समय चाहिए तो वो और समय देने को तयार हैं। अन्ना हजारे ने इस वक्तव्य से सरकार में अपनी पूर्ण सहमति ज़ाहिर की है और ये जता दिया है की वो अब भी इस देश के लोकतन्त्र पर पूर्ण विश्वास रखते हैं।

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