Thursday, 29 March 2012
Wednesday, 28 March 2012
Tuesday, 27 March 2012
घोटालों का भारत
भारत देश का
इतिहास गवाह रहा है कि इस देश को सोने कि चिड़िया कहा जाता था तथा बाहर से आने वाले
आक्रमणकारियों ने इस देश को लूटने मे कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत की आज़ादी के बाद ये आशा बंधी थी के अब हमारा भारत एक ऐसा देश बनेगा जो विकास की नई कहानी लिखेगा
और जहाँ हर एक नागरिक को सभी तरह की स्वतंत्रता मिलेगी तथा सारे देशवासी देश की तरक्की
के हिस्सेदार बनेंगे। लेकिन स्वतंत्रता
प्राप्त होने के बाद ये सपना सपना ही रह गया, क्यूंकि आज़ाद भारत में भी इस देश को लूटने वालों की कोई कमी नहीं थी, भ्रष्टाचार और घोटालों की झड़ी सी लग गई तथा नेताओं ने भारत में सरकारी पैसों
और जनता की दौलत का इतना ग़लत उपयोग किया कि जनता त्राहि त्राहि करने लगी।
देश में पहला सब
से बड़ा घोटाला बोफ़ोर्स घोटाले की शक्ल मे सामने आता है, जब 1987 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार के द्वारा स्वीडन की एक कंपनी को भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने के लिए 80 लाख डालर दिये
गए थे। बाद मे इस मामले पर राजीव गांधी को सरकार छोडनी पड़ी थी और वि पी सिंह एक
हीरो के रूप में उभर कर सामने आए थे।
इसके बाद 1992 में हर्षद मेहता ने शेयर
मार्केट घोटाला कर के लाखों डालर बनाये थे। 2009 में सत्यम कम्प्युटर सर्विसेज के सीईओ रामालिंगा राजू
ने अरबों रुपयों का घोटाला किया, बाद में इस कंपनी को टेक महिंद्रा ने ले लिया और अब ये
महिंद्रा सत्यम के नाम से जानी जाती है। केस अब भी अदालत मे चल रहा है।
पिछले साल सामने आया महाराष्ट्र के मुंबई
में आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला जिसमें मुख्यमंत्री अशोक चवान को गद्दी छोडनी
पड़ी। सेना के जवानों की बेवाओं
के लिए बनाई जाने वाली हाउसिंग सोसाइटी में घोटालों
के द्वारा सरकार के करोड़ो रुपयों का दुरुपयोग किया गया।
अक्टूबर 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में भी करोड़ों रुपयों को इधर उधर किया गया और आयोजन करने के
नाम पर खर्च से कई गुना ज़्यादा रकम सरकार से ली गई। इस घोटाले के बाद राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन कमिटी के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी को अपने पद से हटना पड़ा।
2010 में ही 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने
आया, जिसमें टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस जारी करने में सरकार के करोड़ों रुपयों का घोटाला किया गया। जिसके बाद टेलीकॉम मंत्री ए राजा को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा तथा आज भी इस से संबंधित
जाँच चल रही है। इसी घोटाले में कॉर्पोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया का नाम भी सामने आया।
इन घोटालों के इलावा लोन रिश्वत घोटाला ,बिहार का चारा(पशुपालन) घोटाला, उत्तर प्रदेश का ताज कॉरिडोर घोटाला, नटवर सिंह के द्वारा किया गया तेल के बदले भोजन घोटाला, हवाला स्केंडल, तेलगी स्टाम्प पेपर
घोटाला, मधु
कोड़ा के द्वारा 4000 करोड़ रुपयों का
घपला, जिस से उन्होंने थाइलैंड में सम्पति खरीदी ,
लाइबेरिया में खान तथा कोलकाता और दूसरे बड़े शहरों मे होटल खरीदे। नोट के बदले वोट का मामला , हसन अली खान के अवैध धन और उनके
द्वारा टैक्स चोरी का मामला, भी सामने आया। घोटालों की एक
लंबी सूची है जिनमें सरकार और जनता के पैसों से मंत्रियों, नेताओं, तथा व्यवसायियों
ने अपनी तिजोरीयां भरीं और देश को लूटने का नया इतिहास रचा। मंत्रियों तथा
व्यवसायियों द्वारा विदेशों मे हज़ारों करोड़ रुपये रखने का मामला भी सामने आया है।
अगर ये पैसे इस तरह से दुरुपयोग न होते तो आज भारत की स्थिति कुछ और ही होती और भारत आज विकासशील देश न होकर विकसित देशों
की सूची मे होता। एक अनुमान के अनुसार भारत में अभी तक घोटालों के द्वारा 73 लाख
करोड़ रुपयों का दुरुपयोग किया गया है, जिनसे भारत की तस्वीर बदली जा सकती थी।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना की लड़ाई और जन समर्थन
बहुत सालों से
सुनते आए हैं के खुदा के यहाँ देर है अंधेर नहीं, और वो कोई भी काम किसी से भी ले सकता है। भारत में भी कुछ ऐसा ही
मामला हुआ है।भारत की आज़ादी के बाद जो यहाँ की हालत रही है और नेताओं ने जिस तरह
से सरकारी पैसों का दुरुपयोग किया है, उसका हिसाब नहीं लगाया जा सकता। जब सरकार ही घोटालों में
लिप्त हो तो आम आदमी का कहना ही क्या, भारतीय नौकरशाही के सभी तंत्र में भ्रष्टाचार ने दीमक की तरह
अपना घर बना लिया है तथा आज ये हालत है कि एक छोटे से काम के लिए भी महीनों और
बरसों दौड़ना पड़ता है, ऐसी हालत में यही कहा जा सकता है कि अब इस सोने कि चिड़िया कहलाने वाले भारत
का खुदा ही मालिक है।
कहते हैं जब ज़ुल्म
हद से बढ़ जाता है तो इंकलाब आता ही है जैसा कि ट्यूनिशिया, मिस्र और लीबिया में
देखने मे आया है और इस जनसंघर्ष ने जॉर्डन, यमन और सीरिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इन सभी देशों के रहनुमाओं ने एक लंबे समय से
देश कि गद्दी पर कब्जा जमा रखा था। जिस समय वहाँ इंकलाब की हवा चल रही थी, तब ही यहाँ भारत में ये सवाल उठने लगे
थे कि क्या भारत में भी ऐसे ही आंदोलन की ज़रूरत है, भारत जो कि दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र है और ऐसा भी नहीं
कि यहाँ कानून और व्यवस्था कमज़ोर हों। लेकिन इसके बाद भी यहाँ
भ्रष्टाचार ने पूरे तंत्र को खोखला कर रखा है।
इधर कुछ वर्षों से भारत में भ्रष्टाचार के बहुत बड़े बड़े मामले सामने आए हैं,जिनमें बड़े बड़े
नेताओं और नौकरशाहों का नाम आ रहा था। 2जी स्पेक्ट्रम, आदर्श हाउसिंग
सोसाइटी घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन मे सरकारी पैसों का दुरुपयोग, विदेशी बैंकों
में रखे गए हज़ारों करोड़ रुपयों और काले धन के किस्से सुन सुन कर पूरा भारत हैरान
था कि यही वह भारत है जहाँ किसान आज भी आत्महत्या करते हैं और यहाँ आज भी देश की
एक बड़ी जनसंख्या ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन निर्वाह करती है। और
दूसरी ओर ये लोग करोड़ों रुपयों का इस तरह दुरुपयोग कर रहे हैं। ट्यूनिशिया, मिस्र और लीबिया के हालात देखने के बाद भी ऐसा नहीं लगता था कि भारत में ऐसा आंदोलन किया जा सकता है
क्यूंकि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध और लोकपाल विधेयक
के समर्थन में जंतर मंतर पर किए गए प्रदर्शन और भूख हड़ताल को जिस तरह
पूरे देश से समर्थन मिला उसने ट्यूनिस तथा काहिरा के तहरीर चौक पर किए गए जन
संघर्ष कि याद ताज़ा कर दी।
सरकार ने ये सोचा भी नहीं होगा कि गांधीवादी
कार्यकर्ता अन्ना हजारे की इस भूख हड़ताल को इतना अधिक समर्थन
मिलेगा। देश के कोने कोने से लोगों ने पूरी तरह अन्ना का साथ दिया और विभिन्न
स्थानों पर अन्ना के समर्थन में रैलियाँ आयोजित की, बड़ी संख्या में लोगों ने जंतर मंतर पर जाकर अन्ना को और सरकार को एहसास दिला
दिया की भ्रष्टाचार से जनता अब तंग आ चुकी है, और इस लड़ाई में पूरा भारत अन्ना के साथ है। जनता की ईस एकता ने सरकार को
घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और सरकार जन लोकपाल विधेयक का मसौदा तयार करने के लिए एक संयुक्त कमिटी गठन करने पर राज़ी हो गई। इस कामयाबी से अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता ने भी ये साबित कर दिया है कि अगर
सच्चे दिल से कोशिश की जाए तो सफलता मिलती है।
स्वतंत्र भारत में ये जनता की बहुत बड़ी जीत है। अब इस बात की उम्मीद है कि वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी और सामाजिक कार्यकर्ता शांति भूषण के नेतृत्व में ये कमिटी 30 जून तक अपनी रिपोर्ट पेश कर देगी तथा संसद के
मानसून सत्र में इसे पारित कर दिया जाएगा। बाद में अन्ना हजारे ने अपने तेवर में थोड़ा नरमी लाते हुए ये कहा कि
संसद अगर लोकपाल विधेयक को पास नहीं भी करती है तो वो सरकार के इस फ़ैसले को मान
लेंगे तथा अगर सरकार को इस बिल को पारित करने में और अधिक समय चाहिए तो वो और समय
देने को तयार हैं। अन्ना हजारे ने इस वक्तव्य से सरकार में अपनी पूर्ण सहमति ज़ाहिर की है और ये जता दिया है की वो अब भी इस देश के लोकतन्त्र पर
पूर्ण विश्वास रखते हैं।
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